मन
श्रद्धा की रक्षा
श्रद्धा मन का विषय है और मन चंचल है । मनुष्य जब सत्त्वगुण में होता है, तब श्रद्धा पुष्ट होती है ।
सत्त्वगुण बढ़ता है सात्त्विक आहार-विहार से, सात्त्विक वातावरण में रहने से एवं सत्संग सुनने से । मनुष्य जब रजो-तमोगुणी जीवन जीता है, तो मति नीचे के केन्द्रों में, हलके केन्द्रो में पहुँच जाती है । मति जब नीचे चली जाती है, तब लगता है कि झूठ बोलने में, कपट करने में सार है, कोर्ट कचहरी जाना चाहिए… आदि-आदि ।
श्रद्धा बनी रहे उसके लिए क्या करना चाहिए ? अपनी श्रद्धा, स्वास्थ्य और सूझबूझ को बुलंद बनाये रखने एवं विकसित करने के लिए अपना आहार शुद्ध रखें । यदि असात्त्विक आहार के कारण मन में जरा भी मलिनता आती है तो श्रद्धा घटने लगती है । अत: श्रद्धा को बनाये रखने के लिए आहार शुद्धि का ध्यान रखें ।
पवित्र संग करें, सत्संग में जायें एवं पवित्र ग्रंथों का अध्ययन करें ।
हम जो चाहते है वह सब हो यह सम्भव नहीं है
यह जरूरी नहीं कि हम जैसा चाहते हैं ऐसा जगत बन जाएगा। यह सम्भव नहीं है। हम चाहेंगे ऐसी पत्नी होगी यह सम्भव नहीं है। पति ऐसा ही होगा यह सम्भव नहीं है। शिष्य ऐसा ही होगा यह सम्भव नहीं है। हम जैसा चाहें ऐसे गुरू बनें यह सम्भव नहीं है। यह सम्भव नहीं है ऐसा समझते हुए भी जितना भी उनका कल्याण हो सके ऐसी उनको यात्रा कराना यह अपने हृदय को भी खुश रखना है और उनका भी कल्याण करना है। हृदय को भी खुश रखना है और उनका भी कल्याण करना है।अगर हम किसी प्रकार की पकड़ बाँध रखें तो हमें दुःख होगा।