गुरु
ईर्ष्या का बोझ

एक बार एक गुरु ने अपने सभी शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल प्रवचन में आते
समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू साथ लेकर आएं। उन आलुओं पर उस व्यक्ति
का नाम लिखा होना चाहिए, जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं। जो शिष्य जितने व्यक्तियों
से ईर्ष्या करता है, वह उतने आलू लेकर आए।
अगले दिन सभी शिष्य आलू लेकर आए।
किसी के पास चार आलू थे तो किसी के पास छह। गुरु ने कहा कि अगले सात दिनों तक
ये आलू वे अपने साथ रखें। जहां भी जाएं, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू सदैव
साथ रहने चाहिए। शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन वे क्या करते,गुरु का
आदेश था। दो-चार दिनों के बाद ही शिष्य आलुओं की बदबू से परेशान हो गए।
जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताए और गुरु के पास पहुंचे। गुरु ने कहा, ‘यह सब
मैंने आपको शिक्षा देने के लिए किया था।
जब मात्र सात दिनों में आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिए कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पर रहता होगा। यह ईर्ष्या आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, जिसके
कारण आपके मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक इन आलूओं की तरह। इसलिए अपने मन से
गलत भावनाओं को निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफरत तो
मत करो। इससे आपका मन स्वच्छ और हल्का रहेगा।’
यह सुनकर सभी शिष्यों ने आलुओं के साथ-साथ अपने मन से ईर्ष्या को भी निकाल फेंका।
मातृ-पितृ पूजन दिवस (Parent’s Worship Day) 14th February [NEW SHORT FILM]
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धन्य है आपकी गुरुभक्ति !
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संत आशाराम बापू जी के भक्तो का कहेना ही क्या !
जिस सड़क से सदगुरुदेव भगवान की गाड़ी गुजरी उस सड़क को भी प्रणाम !
गुरु पुष्यामृत योग (16 जनवरी दोपहर 1:14 से 17 जनवरी सूर्योदय तक)
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‘शिव पुराण’ में पुष्य नक्षत्र को भगवान शिव की विभूति बताया गया है | पुष्य नक्षत्र के प्रभाव से अनिष्ट-से-अनिष्टकर दोष भी समाप्तप्राय और निष्फल-से हो जाते हैं, वे हमारे लिए पुष्य नक्षत्र के पूरक बनकर अनुकूल फलदायी हो जाते हैं | ‘सर्वसिद्धिकर: पुष्य: |’ इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है | पुष्य नक्षत्र में किये गए श्राद्ध से पितरों को अक्षय तृप्ति होती है तथा कर्ता को धन, पुत्रादि की प्राप्ति होती है |
देवगुरु बृहस्पति ग्रह का उद्भव पुष्य नक्षत्र से हुआ था, अत: पुष्य व बृहस्पति का अभिन्न संबंध है | पुष्टिप्रदायक पुष्य नक्षत्र का वारों में श्रेष्ठ बृहस्पतिवार (गुरुवार) से योग होने पर वह अति दुर्लभ ‘गुरुपुष्यामृत योग’ कहलाता है |
गुरौ पुष्यसमायोगे सिद्धयोग: प्रकीर्तित: |
शुभ, मांगलिक कर्मों के संपादनार्थ गुरु-पुष्यामृत योग वरदान सिद्ध होता है |
इस योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं |