प्रकृति का अनुपम वरदान है गोमाता

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goujharan

एक सचल औषधालय है गोमाता

  1. आधाशीशी रोग में गोदुग्ध से बनी खीर में बादाम डालकर खाना पूर्ण लाभ करता है.
  2.  पेट की कृमि दूर करने के लिए दूध में शहद मिलाकर पियें.
  3. सर्दी होने पर गर्म दूध में चीनी व काली मिर्च का चूर्ण डाल कर पियें.
  4.  सिर दर्द में दूध में सोंठ घिसकर सिर पर लेप करें.
  5.  पित्त विकार में गाय का घी सिर पर मलें.
  6.  सर्पदंश में घी और बाद में गरम पानी पिये. उल्टी, दस्त होने पर विष दोष दूर हो जाएगा.
  7.  पाचन संस्थान के विकार : रूस के द्वारा गोदुग्ध चिकित्सा के प्रयोग करके शोध किया गया कि कुछ मत खाइए केवल गाय का दूध पीते रहिए शहद के साथ. यकृत, गुर्दे, तिल्ली आमाशय आदि सभी अंग ठीक कम करने लगेंगे.
  8.  डिप्थीरिया (पसली चलना) : यह रोग विशेषकर बालकों के लिए जान लेवा होता है जिसमें दम घुटना, तीव्र ज्वर, आंखे बाहर निकल आना समस्याये होती है. दो चम्मच कुनकुने दूध में आधा चम्मच घी व एक चम्मच शहद मिलाकर बच्चे को पिलायें. उसे शीघ्र ही सुखद लाभ होने लगेगा.
  9.  तपेदिक : यूनान, रूस, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, अरब आदि देशों ने गोदुग्ध से बनी औषधि को तपेदिक में सर्वोत्तम पाया. 250 ग्राम दूध व 250 ग्राम जल के साथ 50 ग्राम मिश्री व 10 ग्राम पिपली पीसकर डालें, उबालकर काढ़ा बनायें. बचे दूध में 65 ग्राम घी व 25 ग्राम शहद घोल कर फेंटें. झाग बने दूध का सेवन करें और यक्ष्मा से मुक्ति पायें.
  10.  धतूरे का विष : गोदुग्ध व घी मिलाकर पियें जो विष नाश के लिए अमृत का कम करेगा.
  11. आग से जलने पर बने छलों पर गोदुग्ध की मलाई या घी का लेप करें, जलन भी शांत होगी, घाव भी भर जाएगा.
  12. नासूर : पुराना गाय का घी लगाते रहने से नासूर सुख जाएगा.
  13. गाय का दही व घी उत्तम बलकारक व वातनाशक है तथा गाय का मट्ठा त्रिदोष नाशक (वात, पित्त, कफ) है तथा बवासीर व उदर विकार नाशक है.

जब छुई मुई हो जाए काया, प्रयोग करें गोदुग्ध की माया.

 

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